"कोरोना" का रोना...
"कोरोना" का जब तक है रोना,
आप अपने स्वास्थ्य हेतु हाथ जरूर धोना ।
शुद्ध खाना और भरपूर जल पीना
शुद्ध खाना और भरपूर जल पीना
अभी गंदगीसे बचकर ही है जीना ।
अब आगे तो कुदरत अपने हर रंग बदलेगी,
आप 'कोरोना' से सबक सिख आजही से सुधर जाना ।
दरवाज़े मंदिर और मस्जिदोके बंद होते है दिलों के नहीं,
दूर देश फ़से अपनोके लिए आप दुआए करना,
उसे मांगने मंदिर - मस्जिद या गुरद्वाऱ ना जाना,
घर बैठे ही दिल से माँगना ।
घर बैठे ही दिल से माँगना ।
दरवाज़े मंदिर और मस्जिदोके बंद होते है दिलों के नहीं,
सच सबको पता है...
भगवान दिलमें है पत्थर और फोटोंमें नहीं ।
भगवान दिलमें है पत्थर और फोटोंमें नहीं ।
आजकी ये सोशल मिडियावाली जिंदगीमें अफवावोंसे न डरना ।
अच्छे 'नागरिक' बन,सोचकर कदम बढ़ाना।
भले कितनेभी आए संकट हमें अपने देशको है संभालना,
हाथ जोड़; झुकाये मस्तक देशकी संस्कृतीका 'सन्मान' है करना ।
अभी मिली छुट्टियों में घर बैठे
मिल-जुलकर भ्रष्टाचार का कोई 'प्लान' ना करना ।
अपनेही देशकी जनतासे क्यों है तुम्हें खिलवाड़ करना ?
अपनेही देशकी जनतासे क्यों है तुम्हें खिलवाड़ करना ?
'समय' दे रहा है 'कुदरत'तो आजही संभल जाना ।
'राक्षस' से 'रक्षक' होकर जिंदगी खुलकर जी लेना ।
'राक्षस' से 'रक्षक' होकर जिंदगी खुलकर जी लेना ।
-- - © स्नेहल बाळापुरे
Nice poem
ReplyDeleteThanks Nilesh
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